रामायण में भोग नहीं त्याग हैं | Full Story of Ramayana in English & Hindi | Hindi Kahaniya
Ramayana Full Story in Hindi & English- जब श्री राम भगवान वनवास को गए तो भरत जी भी राजपाट छोड़कर नंदीग्राम में रहने लगे | शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य सञ्चालन करते थे |
एक रात की बात हैं की कौशिल्या माता जी सो रही थी की उनको अपने महल की छत पर किसी के कदमो की आहट सुनाई दी | कौशिल्या माता जानने के लिए उप्पेर गई की कौन हैं | अँधेरे में उन्होंने पूछा की कौन हैं ?
पूछने पर पता चला की यह श्रुतिकीर्ति हैं | वो उसे अपने साथ निचे ले आई | श्रुतिकीर्ति शत्रुघ्न की पत्नी थी उन्होंने प्रणाम किया और सामने खड़ी हो गई |
माता कौशिल्या ने पूछा इतनी रात को छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? नींद नहीं आ रही ?
और शत्रुघ्न कहा हैं ?
श्रुतिकीर्ति की आँखे भर आई और बोली माँ उन्हें देखे तो तरह वर्ष बीत गए |
यह सुनते ही माता कौशिल्या का ह्रदय कांप गया | माता कौशिल्या ने तुरंत सेवको को आवाज लगाई आधी रात को ही पालकी तैयार हुई | आदेश हुआ की आज रात को ही शत्रुघ्न की खोज होगी | माता पालकी में बैठ कर निकल पड़ी |
आपको मालूम हैं शत्रुघ्न जी कहा मिले ?
अयोध्या के जिस दरवाजे के बहार भरत नंदीग्राम तपस्वी बनकर रहते थे उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला थी | उसी शिला पर अपनी बांह का तकिया बना कर शत्रुघ्न जी लेते हुए मिले |
माता कौशिल्या शत्रुघ्न के सिराहने बैठ गई और बालो में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी की नींद खुल गई | उठते ही शत्रुघ्न ने कहा माँ आप ? अपने कष्ट क्यों किया ? मुझे बुलवा लिया होता |
माँ ने कहा शत्रुघ्न तुम यहाँ क्यों ?
शत्रुघ्न जी आँखों में आसु आ गए और रोते हुए बोले माँ भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए | भैया लक्ष्मण भी उनके साथ चले गए और भैया भारत भी यहाँ नंदीग्राम में रहते हैं क्या ये महल ये रथ और ये राजसी वस्त्र विधाता ने मेरे ही लिए बनाये हैं ?
यह सुनकर माता कौशिल्या जी निरुत्तर हो गई |
इसीलिए कहते हैं दोस्तों यह राम कथा हैं | यह भोग नहीं त्याग की कथा हैं यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही और सभी प्रथम विजेता हैं कोई भी पीछे नहीं हैं | चारो भाईयो का प्रेम और त्याग एक दूसरे के पार्टी अद्धभुत और अभिनव हैं |
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भगवान राम को १४ वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया | परन्तु बचपन से ही बड़े भाई सेवा करने वाले लक्ष्मण जी कैसे दूर हो जाते |
माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली वन जाने की......
परन्तु पत्नी उर्मिला कक्ष की और बढ़ते हुए सोच रहे थे की माँ से तो आज्ञा ले ली पर उर्मिला को कैसे समझाऊंगा ? क्या कहूंगा ?
सोचते विचरते जब लक्ष्मण जी उर्मिला के पास पहुंचे तो देखा की उर्मिला आरती का थाल लेके खड़ी थी | और बोली आप मेरी चिंता छोड़ दीजिये और प्रभु की सेवा के लिए वन को जाइये में आपको नहीं रोकूंगी | मेरे कारन आपकी सेवा में कोई बाधा न आये इसीलिए साथ जाने की जिद्द नहीं करुँगी |
लक्ष्मण को कहने में संकोच हो रहा था | पर उर्मिला ने उससे पहले ही बोल कर लक्ष्मण का संकोच दूर कर दिया | वास्तव में पत्नी का यही धर्म हैं की पति अगर संकोच में पड़े उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से निकल दे |
लक्ष्मण जी तो चले गए परन्तु १४ वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्वनी की भांति कठोर तप किया वन में भैया भाभी की सेवा में लक्ष्मण कभी सोये नहीं पर उर्मिला ने भी अपने महलो द्वार कभी बंद नहीं किया और सारी रात जग कर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया |
ऐसे ही मेघनाद से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती हैं और हनुमान जी उनके लिए संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं तो भरत जी उनको राक्षस समझ कर बाण मरते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं | जब हनुमान जी सारा वृतांत सुनाते हैं की सीता माता को रावण ले गया और लक्ष्मण जी मूर्छित हैं |
यह सुनते ही माता कौशिल्या जी कहती है की राम को कहना की लक्ष्मण के बिना अयोध्या में कदम न रखे | वन में ही रहे | तब माता सुमित्रा कहती हैं की राम से कहना की चिंता न करे मेरे दोनों पुत्रो को भेज दूंगी | मेरे दोनों पुत्र राम की सेवा के लिए जन्मे हैं | माताओ का प्रेम देख कर हनुमान जी आँखों अश्रुधारा बाह रही थी | पर जब हनुमान जी उर्मिला जी को शांत और प्रसन्न खड़े देखा तो उनको लगा की उनको अपने पति के प्राणो की कोई चिंता नहीं हैं ?
तो हनुमान जी पूछते हैं देवी आपकी प्रसन्नता का कारण क्या हैं ? आपके पति के प्राण संकट में हैं सूर्य उदित होते ही कुल का दीपक बुझ जायेगा |
उर्मिला का उत्तर सुनकर कोई भी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पायेगा वे बोली मेरा दीपक संकट में नहीं हैं वो बुझ नहीं सकता रही सूर्योदय की बात तो आप कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये क्योकि आपके वह पहुंचे बिना सूर्योदयः हो ही नहीं सकता हैं | अपने कहा की श्री राम मेरे पति को गोद में लेकर बैठे हैं | जो योगेश्वर राम की गोदी में लेट रखा हो काल उसे छू भी नहीं सकता हैं |
मेरे पति जब से वन गए तब से सोये नहीं और जब भगवान की गोद मिल गई तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया | वे उठ जायेंगे | और शक्ति मेरे पति को नहीं लगी शक्ति तो प्रभु राम को लगी हैं | मेरे पति की हर श्वास में राम हैं उनके रोम रोम में राम हैं |
इसीलिए हनुमान जी आप निश्चित होकर जाये सूर्य उदित नहीं होगा |
इसीलिए दोस्तों राम राज्य की नीव जनक की बेतिया ही थी | कभी सीता तो कभी उर्मिला | भगवान राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समपर्ण, बलिदान से ही आया |
जय सियाराम
जय श्री कृष्णा
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