Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories-16 | बेताल पच्चीसी (बड़ा काम किसने किया?)
Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी :- हेलो दोस्तों कैसे हो आप सब ? आपका फिर हाजिर हैं, एक नई भूतिया स्टोरी के साथ। दोस्तों अगर आप Google पर अगर Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह आये हो।
आप लोगो ने बहुत सी Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी पढ़ी होंगी । पर में आज आप को बताना चाहता हु की ये कहानियां शुरू कहा से ओर किसने की । उसके बाद एक एक कर सारी कहानिया एक के बाद एक बताऊंगा।
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Bani Thani Kishangarh
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Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी में हम आपको विक्रम और बेताल के रहस्य मयी कहानियो की सैर कराने जा रहे हैं, जिसमें प्रवेश करने के बाद आप लोगो को जरूर Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी की कहानियो का आनंद आएगा। तो कहानियो को पूरा पढ़े।
Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories - 16 | बेताल पच्चीसी (बड़ा काम किसने किया?)
हिमाचल पर्वत पर गंधर्वों का एक नगर था, जिसमें जीमूतकेतु नामक राजा राज्य करता था। उसके यहां एक लड़का था, जिसका नाम जीमूतवाहन था।
बाप-बेटे दोनों भले थे। धर्म-कर्म मे लगे रहते थे। इससे प्रजा के लोग बहुत स्वच्छंद हो गए और एक दिन उन्होंने राजा के महल को घेर लिया।
राजकुमार ने यह देखा तो पिता से कहा कि आप चिंता न करें। मैं सबको मार भगाऊंगा।
राजा बोला, ‘नहीं, ऐसा मत करो। युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताए थे।’
इसके बाद राजा अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप राजकुमार के साथ मलयाचल पर जाकर मढ़ी बना कर रहने लगा। वहां जीमूतवाहन की एक ऋषि के बेटे से दोस्ती हो गई।
एक दिन दोनों पर्वत पर भवानी के मंदिर में गए तो दैवयोग से उन्हें मलयकेतु राजा की पुत्री मिली।
दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए। जब कन्या के पिता को मालूम हुआ तो उसने अपनी बेटी उसे ब्याह दी।
एक दिन की बात है कि जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफेद ढे़र दिखाई दिया।
पूछा तो मालूम हुआ कि पाताल से बहुत-से नाग आते हैं, जिन्हें गरुड़ खा लेता है। यह ढे़र उन्हीं की हड्डियों का है। उसे देखकर जीमूतवाहन आगे बढ़ गया।
कुछ दूर जाने पर उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। पास गया तो देखा कि एक बुढ़िया रो रही है।
कारण पूछा तो उसने बताया कि आज उसके बेटे शंखचूड़ नाग की बारी है। उसे गरुड़ आकर खा जाएगा।
जीमूतवाहन ने कहा, ‘मां, तुम चिंता न करो, मैं उसकी जगह चला जाऊंगा।’
बुढ़िया ने बहुत समझाया, पर वह न माना।इसके बाद गरुड़ आया और उसे चोंच में पकड़ कर उड़ा ले गया। संयोग से राजकुमार का बाजूबंद गिर पड़ा, जिस पर राजा का नाम खुदा था। उस पर खून लगा था।
राजकुमारी ने उसे देखा। वह मूर्च्छित हो गई।
होश आने पर उसने राजा और रानी को सब हाल सुनाया।
वे बड़े दुखी हुए और जीमूतवाहन को खोजने निकले। तभी उन्हें शंखचूड़ मिला। उसने गरुड़ को पुकार कर कहा, ‘हे गरुड़! तू इसे छोड़ दे। बारी तो मेरी थी।’
गरुड़ ने राजकुमार से पूछा, ‘तू अपनी जान क्यों दे रहा है?’ उसने कहा, ‘उत्तम पुरुष को हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।’
यह सुनकर गरुड़ बहुत खुश हुआ, उसने राजकुमार से वर मांगने को कहा। जीमूतवाहन ने अनुरोध किया कि सभी सांपों को जिंदा कर दो। गरुड़ ने ऐसा ही किया। फिर उसने कहा, ‘तुझे अपना राज्य भी मिल जाएगा।’
इसके बाद वे लोग अपने नगर को लौट आए। लोगों ने राजा को फिर गद्दी पर बिठा दिया।
इतना कहकर वेताल बोला, ‘हे राजन् यह बताओ, इसमें सबसे बड़ा काम किसने किया?’
राजा ने कहा ‘शंखचूड़ ने?’ वेताल ने पूछा, ‘कैसे?’
राजा बोला, ‘जीमूतवाहन जाति का क्षत्री था। प्राण देने का उसे अभ्यास था। लेकिन बड़ा काम तो शंखचूड़ ने किया, जो अभ्यास न होते हुए भी जीमूतवाहन को बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार हो गया।’
इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे लाया तो उसने फिर एक सत्रहवीं कहानी सुनाई।
तो दोस्तों उम्मीद हैं आप लोगो को आज की कहानी Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | वेताल पच्चीसी में आप लोगो को पसंद आई तो कमेंट करके जरूर बताये और साथ ही दोस्तों Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | वेताल पच्चीसी को Facebook, Twitter पर जरूर शेयर करे। आपके विचारो का हमारे यहाँ स्वागत हैं।
बाप-बेटे दोनों भले थे। धर्म-कर्म मे लगे रहते थे। इससे प्रजा के लोग बहुत स्वच्छंद हो गए और एक दिन उन्होंने राजा के महल को घेर लिया।
राजकुमार ने यह देखा तो पिता से कहा कि आप चिंता न करें। मैं सबको मार भगाऊंगा।
राजा बोला, ‘नहीं, ऐसा मत करो। युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताए थे।’
इसके बाद राजा अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप राजकुमार के साथ मलयाचल पर जाकर मढ़ी बना कर रहने लगा। वहां जीमूतवाहन की एक ऋषि के बेटे से दोस्ती हो गई।
एक दिन दोनों पर्वत पर भवानी के मंदिर में गए तो दैवयोग से उन्हें मलयकेतु राजा की पुत्री मिली।
दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए। जब कन्या के पिता को मालूम हुआ तो उसने अपनी बेटी उसे ब्याह दी।
एक दिन की बात है कि जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफेद ढे़र दिखाई दिया।
पूछा तो मालूम हुआ कि पाताल से बहुत-से नाग आते हैं, जिन्हें गरुड़ खा लेता है। यह ढे़र उन्हीं की हड्डियों का है। उसे देखकर जीमूतवाहन आगे बढ़ गया।
कुछ दूर जाने पर उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। पास गया तो देखा कि एक बुढ़िया रो रही है।
कारण पूछा तो उसने बताया कि आज उसके बेटे शंखचूड़ नाग की बारी है। उसे गरुड़ आकर खा जाएगा।
जीमूतवाहन ने कहा, ‘मां, तुम चिंता न करो, मैं उसकी जगह चला जाऊंगा।’
बुढ़िया ने बहुत समझाया, पर वह न माना।इसके बाद गरुड़ आया और उसे चोंच में पकड़ कर उड़ा ले गया। संयोग से राजकुमार का बाजूबंद गिर पड़ा, जिस पर राजा का नाम खुदा था। उस पर खून लगा था।
राजकुमारी ने उसे देखा। वह मूर्च्छित हो गई।
होश आने पर उसने राजा और रानी को सब हाल सुनाया।
वे बड़े दुखी हुए और जीमूतवाहन को खोजने निकले। तभी उन्हें शंखचूड़ मिला। उसने गरुड़ को पुकार कर कहा, ‘हे गरुड़! तू इसे छोड़ दे। बारी तो मेरी थी।’
गरुड़ ने राजकुमार से पूछा, ‘तू अपनी जान क्यों दे रहा है?’ उसने कहा, ‘उत्तम पुरुष को हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।’
यह सुनकर गरुड़ बहुत खुश हुआ, उसने राजकुमार से वर मांगने को कहा। जीमूतवाहन ने अनुरोध किया कि सभी सांपों को जिंदा कर दो। गरुड़ ने ऐसा ही किया। फिर उसने कहा, ‘तुझे अपना राज्य भी मिल जाएगा।’
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राजा बोला, ‘जीमूतवाहन जाति का क्षत्री था। प्राण देने का उसे अभ्यास था। लेकिन बड़ा काम तो शंखचूड़ ने किया, जो अभ्यास न होते हुए भी जीमूतवाहन को बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार हो गया।’
इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे लाया तो उसने फिर एक सत्रहवीं कहानी सुनाई।
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धन्यवाद
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