Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories-19 | बेताल पच्चीसी (किसको पिंड देना चाहिए?)
Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी :- हेलो दोस्तों कैसे हो आप सब ? आपका फिर हाजिर हैं, एक नई भूतिया स्टोरी के साथ। दोस्तों अगर आप Google पर अगर Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह आये हो।
आप लोगो ने बहुत सी Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी पढ़ी होंगी । पर में आज आप को बताना चाहता हु की ये कहानियां शुरू कहा से ओर किसने की । उसके बाद एक एक कर सारी कहानिया एक के बाद एक बताऊंगा।
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Bani Thani Kishangarh
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Bani Thani Kishangarh
Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी में हम आपको विक्रम और बेताल के रहस्य मयी कहानियो की सैर कराने जा रहे हैं, जिसमें प्रवेश करने के बाद आप लोगो को जरूर Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | बेताल पच्चीसी की कहानियो का आनंद आएगा। तो कहानियो को पूरा पढ़े।
Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories - 19 | बेताल पच्चीसी (किसको पिंड देना चाहिए?)
वक्रोलक नामक नगर में सूर्यप्रभ नाम का राजा राज्य करता था।
उसके कोई संतान नहीं थी। उसी समय में एक दूसरी नगरी में धनपाल नाम का एक साहूकार रहता था। उसकी स्त्री का नाम हिरण्यवती था और उसके धनवती नाम की एक पुत्री थी।
जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल मर गया और उसके नाते-रिश्तेदारों ने उसका धन ले लिया। हिरण्यवती अपनी लड़की को लेकर रात के समय नगर छोड़कर चल दी। रास्ते में उसे एक चोर सूली पर लटकता हुआ मिला। वह मरा नहीं था। उसने हिरण्यवती को देखकर अपना परिचय दिया और कहा, ‘मैं तुम्हें एक हजार अशर्फियां दूंगा। तुम अपनी लड़की का ब्याह मेरे साथ कर दो।’
हिरण्यवती ने कहा, ‘तुम तो मरने वाले हो।’
चोर बोला, ‘मेरे कोई पुत्र नहीं है और निपूते की परलोक में सद्गति नहीं होती। अगर मेरी आज्ञा से और किसी से भी इसके पुत्र पैदा हो जाएगा तो मुझे सद्गति मिल जाएगी।’
हिरण्यवती ने लोभ के वश होकर उसकी बात मान ली और धनवती का ब्याह उसके साथ कर दिया। चोर बोला, ‘इस बड़ के पेड़ के नीचे अशर्फियां गड़ी हैं, सो ले लेना और मेरे प्राण निकलने पर मेरा क्रिया-कर्म करके तुम अपनी बेटी के साथ अपने नगर में चली जाना।’
इतना कहकर चोर मर गया। हिरण्यवती ने जमीन खोदकर अशर्फियां निकालीं, चोर का क्रिया-कर्म किया और अपने नगर में लौट आई।
उसी नगर में वसुदत्त नाम का एक गुरु था, जिसके मनस्वामी नाम का शिष्य था। वह शिष्य एक वेश्या से प्रेम करता था।
वेश्या उससे पांच सौ अशर्फियां मांगती थी। वह कहां से लाकर देता!
संयोग से धनवती ने मनस्वामी को देखा और वह उसे चाहने लगी। उसने अपनी दासी को उसके पास भेजा।
मनस्वामी ने कहा कि मुझे पांच सौ अशर्फियां मिल जाएं तो मैं एक रात धनवती के साथ रह सकता हूं।
हिरण्यवती राजी हो गई। उसने मनस्वामी को पांच सौ अशर्फियां दे दीं। बाद में धनवती के एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
उसी रात शिवाजी ने सपने में उन्हें दर्शन देकर कहा, ‘तुम इस बालक को हजार अशर्फियों के साथ राजा के महल के दरवाजे पर रख आओ।’
मां-बेटी ने ऐसा ही किया। उधर शिवाजी ने राजा को सपने में दर्शन देकर कहा, ‘तुम्हारे द्वार पर किसी ने धन के साथ लड़का रख दिया है, उसे ग्रहण करो।’
राजा ने अपने नौकरों को भेजकर बालक और अशर्फियों को मंगा लिया। बालक का नाम उसने चन्द्रप्रभ रखा। जब वह लड़का बड़ा हुआ तो उसे गद्दी सौंपकर राजा काशी चला गया और कुछ दिन बाद मर गया।
पिता के ऋण से उऋण होने के लिए चन्द्रप्रभ तीर्थ करने निकला। जब वह घूमते हुए गयाकूप पहुंचा और पिण्डदान किया तो उसमें से तीन हाथ एक साथ निकले।
चन्द्रप्रभ ने चकित होकर ब्राह्मणों से पूछा कि किसको पिण्ड दूं?
उन्होंने कहा, ‘लोहे की कीलवाला चोर का हाथ है, पवित्रीवाला ब्राह्मण का है और अंगूठीवाला राजा का। आप तय करो कि किसको देना है?’
इतना कहकर वेताल बोला, ‘राजन्, तुम बताओ कि उसे किसको पिण्ड देना चाहिए?’
राजा ने कहा, ‘चोर को; क्योंकि उसी का वह पुत्र था।
मनस्वामी उसका पिता इसलिए नहीं हो सकता कि वह तो एक रात के लिए पैसे से खरीदा हुआ था। राजा भी उसका पिता नहीं हो सकता, क्योंकि उसे बालक को पालने के लिए धन मिल गया था। इसलिए चोर ही पिण्ड का अधिकारी है।’
इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहां जाकर उसे लाना पड़ा। रास्ते में फिर उसने अगली कहानी सुनाई।
तो दोस्तों उम्मीद हैं आप लोगो को आज की कहानी Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | वेताल पच्चीसी में आप लोगो को पसंद आई तो कमेंट करके जरूर बताये और साथ ही दोस्तों Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | वेताल पच्चीसी को Facebook, Twitter पर जरूर शेयर करे। आपके विचारो का हमारे यहाँ स्वागत हैं।
उसके कोई संतान नहीं थी। उसी समय में एक दूसरी नगरी में धनपाल नाम का एक साहूकार रहता था। उसकी स्त्री का नाम हिरण्यवती था और उसके धनवती नाम की एक पुत्री थी।
जब धनवती बड़ी हुई तो धनपाल मर गया और उसके नाते-रिश्तेदारों ने उसका धन ले लिया। हिरण्यवती अपनी लड़की को लेकर रात के समय नगर छोड़कर चल दी। रास्ते में उसे एक चोर सूली पर लटकता हुआ मिला। वह मरा नहीं था। उसने हिरण्यवती को देखकर अपना परिचय दिया और कहा, ‘मैं तुम्हें एक हजार अशर्फियां दूंगा। तुम अपनी लड़की का ब्याह मेरे साथ कर दो।’
हिरण्यवती ने कहा, ‘तुम तो मरने वाले हो।’
चोर बोला, ‘मेरे कोई पुत्र नहीं है और निपूते की परलोक में सद्गति नहीं होती। अगर मेरी आज्ञा से और किसी से भी इसके पुत्र पैदा हो जाएगा तो मुझे सद्गति मिल जाएगी।’
हिरण्यवती ने लोभ के वश होकर उसकी बात मान ली और धनवती का ब्याह उसके साथ कर दिया। चोर बोला, ‘इस बड़ के पेड़ के नीचे अशर्फियां गड़ी हैं, सो ले लेना और मेरे प्राण निकलने पर मेरा क्रिया-कर्म करके तुम अपनी बेटी के साथ अपने नगर में चली जाना।’
इतना कहकर चोर मर गया। हिरण्यवती ने जमीन खोदकर अशर्फियां निकालीं, चोर का क्रिया-कर्म किया और अपने नगर में लौट आई।
उसी नगर में वसुदत्त नाम का एक गुरु था, जिसके मनस्वामी नाम का शिष्य था। वह शिष्य एक वेश्या से प्रेम करता था।
वेश्या उससे पांच सौ अशर्फियां मांगती थी। वह कहां से लाकर देता!
संयोग से धनवती ने मनस्वामी को देखा और वह उसे चाहने लगी। उसने अपनी दासी को उसके पास भेजा।
मनस्वामी ने कहा कि मुझे पांच सौ अशर्फियां मिल जाएं तो मैं एक रात धनवती के साथ रह सकता हूं।
हिरण्यवती राजी हो गई। उसने मनस्वामी को पांच सौ अशर्फियां दे दीं। बाद में धनवती के एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
उसी रात शिवाजी ने सपने में उन्हें दर्शन देकर कहा, ‘तुम इस बालक को हजार अशर्फियों के साथ राजा के महल के दरवाजे पर रख आओ।’
मां-बेटी ने ऐसा ही किया। उधर शिवाजी ने राजा को सपने में दर्शन देकर कहा, ‘तुम्हारे द्वार पर किसी ने धन के साथ लड़का रख दिया है, उसे ग्रहण करो।’
राजा ने अपने नौकरों को भेजकर बालक और अशर्फियों को मंगा लिया। बालक का नाम उसने चन्द्रप्रभ रखा। जब वह लड़का बड़ा हुआ तो उसे गद्दी सौंपकर राजा काशी चला गया और कुछ दिन बाद मर गया।
पिता के ऋण से उऋण होने के लिए चन्द्रप्रभ तीर्थ करने निकला। जब वह घूमते हुए गयाकूप पहुंचा और पिण्डदान किया तो उसमें से तीन हाथ एक साथ निकले।
चन्द्रप्रभ ने चकित होकर ब्राह्मणों से पूछा कि किसको पिण्ड दूं?
उन्होंने कहा, ‘लोहे की कीलवाला चोर का हाथ है, पवित्रीवाला ब्राह्मण का है और अंगूठीवाला राजा का। आप तय करो कि किसको देना है?’
इतना कहकर वेताल बोला, ‘राजन्, तुम बताओ कि उसे किसको पिण्ड देना चाहिए?’
राजा ने कहा, ‘चोर को; क्योंकि उसी का वह पुत्र था।
मनस्वामी उसका पिता इसलिए नहीं हो सकता कि वह तो एक रात के लिए पैसे से खरीदा हुआ था। राजा भी उसका पिता नहीं हो सकता, क्योंकि उसे बालक को पालने के लिए धन मिल गया था। इसलिए चोर ही पिण्ड का अधिकारी है।’
इतना सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वहां जाकर उसे लाना पड़ा। रास्ते में फिर उसने अगली कहानी सुनाई।
तो दोस्तों उम्मीद हैं आप लोगो को आज की कहानी Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | वेताल पच्चीसी में आप लोगो को पसंद आई तो कमेंट करके जरूर बताये और साथ ही दोस्तों Vikram Betal Story in Hindi | Vikram Betal Stories | वेताल पच्चीसी को Facebook, Twitter पर जरूर शेयर करे। आपके विचारो का हमारे यहाँ स्वागत हैं।
धन्यवाद
Tags - vikram betal, vikram and betal, vikram betal serial, vikram betaal ki rahasya gatha
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